मेरी कलम से....... मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज ही उसका सबसे बड़ा शरण स्थल है जिसका निर्माण हरेक व्यक्ति की सोच और मानसिकता से होता है।यदि हमारी सोच और मानसिकता समाज के प्रति सकारात्मक है तो व्यक्ति और समाज का विकास सुगमता से संभव है।लेकिन इसमें हरेक व्यक्ति की भागीदारी होना भी सुनिश्चित हो। हमारा जीवन प्रकृति का सबसे बहुमूल्य उपहार है यदि यह अपने अलावा किसी अन्य के भी काम आ सकता है तो इससे बड़ा जीवनानंद कुछ नहीं हो सकता। प्रकृति का नियम है की यदि हमने किसी से कुछ लिया है तो लौटाना भी जरूर होगा। हम जिस समाज में जीवनयापन करते हैं वह हमारे जीवन का आधार है इसलिए जरूरी है की हम इस समाज को पूर्णतया नहीं तो संभवतया अधिकाधिक लौटाने का प्रयास करें तो हम अपने आपको धन्य समझने में गर्व महसूस करेंगे। परिपाटी से हटकर अपने हौसलों को बुलंद करने का साहस सही समय पर ही दिखाना पड़ेगा। किसी भी समाज को कुछ लोगों के द्वारा सींचा जाता है और कुछ लोगों के द्वारा घसीटा जाता है। उचित क्या है? जरा सोचिएगा,क्या हमारी भूमिका समाज में उतनी और वैसी है जितनी और जैसी होनी चाहिए? यदि हां,तो हमारा सामाजिक जीवन सार्थकता की ओर अग्रसर है और यदि नहीं तो हम अपना जीवन गुमनामी और निर्थकता के साए में यापन कर रहें हैं। यदि मिशाल बनना है तो अपने जीवन में त्याग की भावना जगानी पड़ेगी और उसके लिए सबसे बड़ा साधन है शिक्षा,जिसके प्रसार से मानसिकता के अधिकतर रंद्र अपने आप ही विवेकशील और क्रियाशील हो जाएंगे। । |